बस 9 मिनट में कैसे करें हर अंग की एक्सरसाइज

हर अंग की एक्सरसाइज करनी चाहिए। ऐसी बहुत-सी एक्सरसाइज हैं, जिन्हें 10 से 15 मिनट में किया जा सकता है। एक्सपर्ट्स से जानें कि कम समय में कैसे एक्सरसाइज कर खुद को रख सकते हैं फिट।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल में एक्सरसाइज की नई गाइडलाइंस जारी की हैं। साथ ही बताया है कि काफी संख्या में ऐसे लोग हैं जो न तो एक्सरसाइज करते हैं और न कोई फिजिकल ऐक्टिविटी। इसका सबसे बड़ा कारण लोगों के पास समय न होना है। हर अंग की एक्सरसाइज करनी चाहिए। जिस अंग की एक्सरसाइज नहीं होती, वह जल्दी खराब हो जाता है।
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इसलिए कहा जाता है- Use it or Lose it. ऐसी बहुत-सी एक्सरसाइज हैं, जिन्हें 10 से 15 मिनट में किया जा सकता है।
फिटनेस बनाए रखने के हैं अलग-अलग फंडे
WHO के अलावा कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी और अमेरिका के मेयो क्लिनिक के हेल्थ एक्सपर्ट्स ने भी फिटनेस का नया फंडा जारी किया है। इन एक्स्पर्ट्स ने 20 लोगों को 11 मिनट की 6 एक्सरसाइज 6 हफ्ते तक कराईं। इससे उन लोगों की फिटनेस का लेवल 7 फीसदी तक बढ़ गया। जानें, किसने किस एक्सरसाइज पर दिया जोर:
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रोजाना की जाने वाली फिजिकल ऐक्टिविटी से दिल की बीमारियां, डायबिटीज और कैंसर आदि बीमारियां दूर रहती हैं। साथ ही डिप्रेशन और एंग्जाइटी में कमी आती है।
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एक शख्स को हर हफ्ते 150 से 300 मिनट (ढाई से 5 घंटे) तक एरोबिक ऐक्टिविटी करना चाहिए।
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साइकिल चलाना या वॉक करना या दौड़ लगाना भी काफी फायदेमंद रहता है।
इन एक्सरसाइज को करने की सलाह

हर हफ्ते:
कुल 75 से 150 मिनट तक तेज गति से एरोबिक एक्सरसाइज करें। इसमें रस्सी कूदना, तेज चलना, स्विमिंग, दौड़ना, साइकिल चलाना आदि शामिल हैं।

हफ्ते में 3 दिन:
मल्टी कम्पोनेंट एक्सरसाइज जैसे स्ट्रेचिंग, वजन उठाना, एरोबिक्स आदि करें। इससे न सिर्फ स्ट्रेंथ बढ़ती है बल्कि बॉडी का बैलेंस भी बनता है।

हफ्ते में 2 दिन:
मांसपेशियों और हड्डियों से जुड़ी एक्सरसाइज करें। इनमें डंबल उठाना, डिप्स लगाना, पुशअप्स, पुलअप्स, स्ट्रेचिंग आदि शामिल

1 मिनट तक जंपिंग जैक:
हवा में ऊपर की ओर उछलकर पैरों को फैलाते हुए हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं और पंजों को आपस में जोड़ लें। इसके बाद इसी तरह फिर से उछलकर सामान्य स्थिति में आ जाएं।

1 मिनट तक मॉडिफाइड बर्पी:
दोनों हाथ ऊपर करके खड़े हो जाएं। अब घुटने मोड़ते हुए हाथों को जमीन पर टिकाएं। दोनों पैरों को पीछे की ओर इस तरह ले जाएं जैसे पुशअप्स करते हैं (ध्यान रखें, पुशअप्स नहीं करने हैं)। अब वापस पहले वाली स्थिति में आकर खड़े हो जाएं।

1 मिनट तक घुटने ऊपर करके दौड़ना:
एक जगह खड़े हो जाएं। खड़े-खड़े एक पैर को मोड़ते हुए घुटने से ऊपर की ओर ले जाएं, फिर नीचे लाएं। इसके बाद दूसरे पैर से भी दोहराएं। इसे ऐसे करें जैसे कि दौड़ लगाते हैं। इस एक्सरसाइज को 'हाई नी रनिंग' भी कहते हैं।
फिर 1 मिनट तक वॉक करें

योग के 10 प्रमुख आसन और उनके लाभ

दोस्तों, 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है. इस विशेष दिवस पर हम अच्छीखबर के सभी पाठकों के साथ योग अभ्यास के कुछ पहलुओं को आपके सामने रखना चाहते हैं जिससे आप सब भी योग अपनाएं और स्वस्थ व सुखी जीवन जीयें।
योग क्या है?
योग का अर्थ है जोड़ना. जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना, पूरी तरह से एक हो जाना ही योग है। योगाचार्य महर्षि पतंजली ने सम्पूर्ण योग के रहस्य को अपने योगदर्शन में सूत्रों के रूप में प्रस्तुत किया है.
अष्टांग योग क्या है?
हमारे ऋषि मुनियों ने योग के द्वारा शरीर मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बताएँ हैं, जिसे अष्टांग योग कहते हैं..
ये निम्न हैं-
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रात्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि .
आसान से क्या तात्पर्य है और उसके प्रकार कौन से हैं?
आसान से तात्पर्य शरीर की वह स्थिति है जिसमें आप अपने शरीर और मन को शांत स्थिर और सुख से रख सकें. स्थिरसुखमासनम्: सुखपूर्वक बिना कष्ट के एक ही स्थिति में अधिक से अधिक समय तक बैठने की क्षमता को आसन कहते हैं।
योग शास्त्रों के परम्परानुसार चौरासी लाख आसन हैं और ये सभी जीव जंतुओं के नाम पर आधारित हैं। इन आसनों के बारे में कोई नहीं जानता इसलिए चौरासी आसनों को ही प्रमुख माना गया है. और वर्तमान में बत्तीस आसन ही प्रसिद्ध हैं।
आसनों को अभ्यास शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से स्वास्थ्य लाभ एवं उपचार के लिए किया जाता है।
आसनों को दो समूहों में बांटा गया है:-
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गतिशील आसान
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स्थिर आसान
गतिशील आसन- वे आसन जिनमे शरीर शक्ति के साथ गतिशील रहता है.
स्थिर आसन- वे आसन जिनमे अभ्यास को शरीर में बहुत ही कम या बिना गति के किया जाता है.
आइये अपने शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए इन आसनों के बारे में जानते हैं
स्वस्तिकासन / Swastikasana

स्थिति:- स्वच्छ कम्बल या कपडे पर पैर फैलाकर बैठें।
विधि:- बाएं पैर को घुटने से मोड़कर दाहिने जंघा और पिंडली (calf, घुटने के नीचे का हिस्सा) और के बीच इस प्रकार स्थापित करें की बाएं पैर का तल छिप जाये उसके बाद दाहिने पैर के पंजे और तल को बाएं पैर के नीचे से जांघ और पिंडली के मध्य स्थापित करने से स्वस्तिकासन बन जाता है। ध्यान मुद्रा में बैठें तथा रीढ़ (spine) सीधी कर श्वास खींचकर यथाशक्ति रोकें।इसी प्रक्रिया को पैर बदलकर भी करें।
लाभ:-
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पैरों का दर्द, पसीना आना दूर होता है।
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पैरों का गर्म या ठंडापन दूर होता है.. ध्यान हेतु बढ़िया आसन है।
गोमुखासन /Gomukhasana

विधि:-
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दोनों पैर सामने फैलाकर बैठें। बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को दाएं नितम्ब (buttocks) के पास रखें।
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दायें पैर को मोड़कर बाएं पैर के ऊपर इस प्रकार रखें की दोनों घुटने एक दूसरे के ऊपर हो जाएँ।
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दायें हाथ को ऊपर उठाकर पीठ की ओर मुडिए तथा बाएं हाथ को पीठ के पीछे नीचे से लाकर दायें हाथ को पकडिये .. गर्दन और कमर सीधी रहे।
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एक ओ़र से लगभग एक मिनट तक करने के पश्चात दूसरी ओ़र से इसी प्रकार करें।
Tip:- जिस ओ़र का पैर ऊपर रखा जाए उसी ओ़र का (दाए/बाएं) हाथ ऊपर रखें.
लाभ:-
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अंडकोष वृद्धि एवं आंत्र वृद्धि में विशेष लाभप्रद है।
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धातुरोग, बहुमूत्र एवं स्त्री रोगों में लाभकारी है।
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यकृत, गुर्दे एवं वक्ष स्थल को बल देता है। संधिवात, गाठिया को दूर करता है।
गोरक्षासन / Gorakhshasana

विधि:-
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दोनों पैरों की एडी तथा पंजे आपस में मिलाकर सामने रखिये।
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अब सीवनी नाड़ी (गुदा एवं मूत्रेन्द्रिय के मध्य) को एडियों पर रखते हुए उस पर बैठ जाइए। दोनों घुटने भूमि पर टिके हुए हों।
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हाथों को ज्ञान मुद्रा की स्थिति में घुटनों पर रखें।
लाभ:-
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मांसपेशियो में रक्त संचार ठीक रूप से होकर वे स्वस्थ होती है.
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मूलबंध को स्वाभाविक रूप से लगाने और ब्रम्हचर्य कायम रखने में यह आसन सहायक है।
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इन्द्रियों की चंचलता समाप्त कर मन में शांति प्रदान करता है. इसीलिए इसका नाम गोरक्षासन है।
अर्द्धमत्स्येन्द्रासन /Ardha Matsyendrasana

विधि:-
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दोनों पैर सामने फैलाकर बैठें. बाएं पैर को मोड़कर एडी को नितम्ब के पास लगाएं।
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बाएं पैर को दायें पैर के घुटने के पास बाहर की ओ़र भूमि पर रखें।
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बाएं हाथ को दायें घुटने के समीप बाहर की ओ़र सीधा रखते हुए दायें पैर के पंजे को पकडें।
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दायें हाथ को पीठ के पीछे से घुमाकर पीछे की ओ़र देखें।
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इसी प्रकार दूसरी ओ़र से इस आसन को करें।
लाभ:-
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मधुमेह (diabetes) एवं कमरदर्द में लाभकारी। Related Post:
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पृष्ठ देश की सभी नस नाड़ियों में (जो मेरुदंड (Vertebra) के इर्द-गिर्द फैली हुई है.) रक्त संचार को सुचारू रूप से चलाता है।
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उदर (पेट) विकारों को दूर कर आँखों को बल प्रदान करता है।
योगमुद्रासन / Yoga Mudrasana

स्थिति- भूमि पर पैर सामने फैलाकर बैठ जाइए.
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विधि-
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बाएं पैर को उठाकर दायीं जांघ पर इस प्रकार लगाइए की बाएं पैर की एडी नाभि केनीचे आये।
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दायें पैर को उठाकर इस तरह लाइए की बाएं पैर की एडी के साथ नाभि के नीचे मिल जाए।
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दोनों हाथ पीछे ले जाकर बाएं हाथ की कलाई को दाहिने हाथ से पकडें. फिर श्वास छोड़ते हुए।
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सामने की ओ़र झुकते हुए नाक को जमीन से लगाने का प्रयास करें. हाथ बदलकर क्रिया करें।
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पुनः पैर बदलकर पुनरावृत्ति करें।
लाभ- चेहरा सुन्दर, स्वभाव विनम्र व मन एकाग्र होता है.
सर्वांगासन

स्थिति:- दरी या कम्बल बिछाकर पीठ के बल लेट जाइए.
विधि:-
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दोनों पैरों को धीरे –धीरे उठाकर 90 अंश तक लाएं. बाहों और कोहनियों की सहायता से शरीर के निचले भाग को इतना ऊपर ले जाएँ की वह कन्धों पर सीधा खड़ा हो जाए।
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पीठ को हाथों का सहारा दें .. हाथों के सहारे से पीठ को दबाएँ . कंठ से ठुड्ठी लगाकर यथाशक्ति करें।
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फिर धीरे-धीरे पूर्व अवस्था में पहले पीठ को जमीन से टिकाएं फिर पैरों को भी धीरे-धीरे सीधा करें।
लाभ:-
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थायराइड को सक्रिय एवं स्वस्थ बनाता है।
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मोटापा, दुर्बलता, कद वृद्धि की कमी एवं थकान आदि विकार दूर होते हैं।
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एड्रिनल, शुक्र ग्रंथि एवं डिम्ब ग्रंथियों को सबल बनाता है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम / Anulom Vilom Pranayam

विधि:-
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ध्यान के आसान में बैठें।
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बायीं नासिका से श्वास धीरे-धीरे भीतर खींचे।
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श्वास यथाशक्ति रोकने (कुम्भक) के पश्चात दायें स्वर से श्वास छोड़ दें।
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पुनः दायीं नाशिका से श्वास खीचें।
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यथाशक्ति श्वास रूकने (कुम्भक) के बाद स्वर से श्वास धीरे-धीरे निकाल दें।
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जिस स्वर से श्वास छोड़ें उसी स्वर से पुनः श्वास लें और यथाशक्ति भीतर रोककर रखें… क्रिया सावधानी पूर्वक करें, जल्दबाजी ने करें।
लाभ:-
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शरीर की सम्पूर्ण नस नाडियाँ शुद्ध होती हैं।
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शरीर तेजस्वी एवं फुर्तीला बनता है।
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भूख बढती है।
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रक्त शुद्ध होता है।
सावधानी:-
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नाक पर उँगलियों को रखते समय उसे इतना न दबाएँ की नाक कि स्थिति टेढ़ी हो जाए।
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श्वास की गति सहज ही रहे।
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कुम्भक को अधिक समय तक न करें।
कपालभाति प्राणायाम / Kapalbhati Pranayam

विधि:-
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कपालभाति प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ है, मष्तिष्क की आभा को बढाने वाली क्रिया।
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इस प्राणायाम की स्थिति ठीक भस्त्रिका के ही सामान होती है परन्तु इस प्राणायाम में रेचक अर्थात श्वास की शक्ति पूर्वक बाहर छोड़ने में जोड़ दिया जाता है।
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श्वास लेने में जोर ने देकर छोड़ने में ध्यान केंद्रित किया जाता है।
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कपालभाति प्राणायाम में पेट के पिचकाने और फुलाने की क्रिया पर जोर दिया जाता है।
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इस प्राणायाम को यथाशक्ति अधिक से अधिक करें।
लाभ:-
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हृदय, फेफड़े एवं मष्तिष्क के रोग दूर होते हैं।
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कफ, दमा, श्वास रोगों में लाभदायक है।
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मोटापा, मधुमेह, कब्ज एवं अम्ल पित्त के रोग दूर होते हैं।
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मस्तिष्क एवं मुख मंडल का ओज बढ़ता है।
भ्रामरी प्राणायाम / Bhramri Panayam

विधि:-
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आसन में बैठकर रीढ़ को सीधा कर हाथों को घुटनों पर रखें . तर्जनी को कान के अंदर डालें।
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दोनों नाक के नथुनों से श्वास को धीरे-धीरे ओम शब्द का उच्चारण करने के पश्चात मधुर आवाज में कंठ से भौंरे के समान गुंजन करें।
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नाक से श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ दे।
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पूरा श्वास निकाल देने के पश्चात भ्रमर की मधुर आवाज अपने आप बंद होगी।
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इस प्राणायाम को तीन से पांच बार करें।
लाभ:-
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वाणी तथा स्वर में मधुरता आती है।
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ह्रदय रोग के लिए फायदेमंद है।
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मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है।
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पेट के विकारों का शमन करती है।
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उच्च रक्त चाप पर नियंत्रण करता है।